शापित अनिका: भाग ८

आशुतोष कमोड़ पर बैठा सिगरेट के लंबे- लंबे कश ले रहा था। उसका मन स्वामी शिवदास की बात को मान चुका था लेकिन उसका दिमाग इसे पूरी तरह नकार रहा था। आखिर एक एम.बी.बी.एस. आदमी भूत- प्रेतों की बातों पर यकीन करे भी तो कैसे? लेकिन फिर उसे अपने सपनों का ख्याल आया।


"चलो.... जब भगवान को मानतें हैं तो एक बार शैतान को भी मान लेते हैं।" बड़बड़ाते हुये वो खड़ा हुआ और सिगरेट का आखिरी कश लेकर उसने सिगरेट कमोड़ में ड़ाली और फ्लश करके लड़खड़ाते हुये अपने रूम में आ गया।


"अंदर आ जाइये स्वामी जी!" वो बेड़ पर बैठते हुये बोला। कुछ ही देर में उसकी आवाज सुनकर सब लोग अंदर आ गये।


"देखिये सच कहूं तो मेरा दिमाग इन सब बातों को पूरी तरह से नकार रहा है लेकिन पिछले हफ्ते से जो कुछ भी मेरे साथ हो रहा है.... तो मेरे पास विश्वास करने के अलावा और कोई ऑप्शन भी नहीं है।" उसने सीधे स्वामी शिवदास को देखकर कहा- "मुझे अघोरा के बारे में जानना है।"


"जरूर.... जितना मुझे ज्ञात है, मैं उतना तुमको बता सकता हूं।" स्वामी शिवदास ने आशुतोष को अघोरा की पूरी कहानी सुनाई। सबने अघोरा की कहानी बड़ी शांति से सुनी।


"तो आप कहना चाहते हैं कि हम लोहासिंह के वंशज है और अनिका धर्मपाल सिंह की?" आशुतोष ने पूछा तो शिवदास जी से था लेकिन उसकी नजर अपने पिता के चेहरे पर टिकीं थी।


"हां, और तुम्हे और अनिका को मिलकर इस श्राप को तोड़कर अपनी आने वाली पीढ़ियों को इस श्राप से मुक्त करना है।" स्वामी जी ने शांत अवस्था में कहा।


"हूं...." आशुतोष ने कुछ सोचते हुये कहा- "पापा क्या मैं स्वामी जी से कुछ बात कर सकता हूं? अकेले में?"


मि. श्यामसिंह ने स्वामी शिवदास की ओर देखा तो उन्होनें पलकें झपकाकर अपनी मौन- स्वीकृति दे दी। स्वामी जी की सहमति मिलते ही श्यामसिंह बाहर जाने लगे तो सबने उनका अनुसरण किया, लेकिन आशुतोष ने सिड़ को रोक लिया।


"अगर आपको कोई दिक्कत न हो तो मैं एक सिगरेट पी सकता हूं?" आशुतोष ने मुस्कुराकर स्वामी जी से कहा और सिड़ के चेहरे पर एक नजर ड़ाली।


"नहीं, मुझे कोई परेशानी नहीं है लेकिन तुम तो चिकित्सक हो और जानते ही होंगे कि मादक पदार्थों के सेवन से स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है।" स्वामी जी मुस्कुराये।


आशुतोष ने सिड़ से सिगरेट लेकर जलाई और उसे बाहर जाने का इशारा करते हुये स्वामी जी से बोला- "हां, पर भोलेनाथ के भक्त हैं तो उनका प्रसाद कैसे छोड़ दें?"


"हा.... हा.... हा.... सब कहने की बातें हैं वरना महादेव ने तो हलाहल भी पिया था। कितनों ने उनका अनुसरण करते हुये विषपान किया है?" स्वामी जी ने ठहाका लगाया- "भक्ति की आड़ में मानव अपनी बुराइयां नहीं छुपा सकता और यह उचित भी नहीं है।"


"हो सकता है.... लेकिन ये भी तो स्लो प्वायजन ही है।" आशुतोष ने हवा में धुंआ उड़ाते हुये कहा- "लेकिन मुझे आपसे कुछ पूछना था।"


"अवश्य! यदि मेरे ज्ञान में हुआ तो मैं अवश्य तुम्हारा संशय दूर करूंगा। इसीलिये तो हम एकांत में चर्चा कर रहें हैं।" स्वामी शिवदास बोले।


"पहले तो आप बिस्तर पर बैठ जाइये। आप ऐसे खड़ें हैं और मैं बिस्तर पर...."


"नहीं वत्स! हम ठीक है।"


"अच्छा तो ये स्टूल पर ही बैठ जाइये।" आशुतोष ने बेड़ के पास रखे स्टूल की तरफ इशारा किया तो स्वामी शिवदास मुस्कुराते हुये उस पर आसीन हुये।


"क्या आप रूद्र के बारे में कुछ जानते हैं?" आशुतोष ने उनकी आंखों में झांकते हुये पूछा।


"हां, शास्त्रों में ग्यारह रूद्रों का वर्णन मिलता है। कहते हैं कि इन ग्यारह रूद्रों के मेल से ही भगवान शिव का शरीर बना है।" स्वामी जी बोले।


"ये तो मैं भी जानता हूं लेकिन मैं उनकी बात नहीं कर रहा...." आशुतोष उत्तेजित होकर बोला- "मैं जिसकी बात कर रहा हूं वो कोई वॉरियर था। हाथ में अजीब सी तलवार, पीठ में तरकश और एक अजीब सा धनुष जो शायद लकड़ी, मेटल और सींग से बना था।"


"शास्त्रों या ग्रंथो में तो ऐसे किसी योद्धा का वर्णन नहीं है और न ही अन्य किसी इतिहास में...." स्वामी जी बोले- "कदाचित आपको कोई भ्रम हो रहा है।"


"हो सकता है...." आशुतोष ने खुद को संयत करते हुये कहा- "लेकिन आज जब अघोरा ने मुझपर हमला किया तो उससे पहले मैंनें उसकी एक झलक देखी थी और ताज्जुब की बात ये है कि उसकी शक्ल हू- ब- हू मेरी तरह थी।"


"कदाचित ये मात्र एक स्वप्न रहा हो!" स्वामी जी मुस्कुराकर बोले लेकिन आशुतोष के दिमाग में अघोरी की कही बात गूंज रही थी- "इसे बस सपना समझने की भूल मत करना।"


* * *



उधर मंदिर में स्वामी अच्युतानंद से अघोरा की कहानी सुनकर अनिका के मन में हजारों सवाल बिजली की गति से दौड़ रहे थे। हालांकि वो स्वामी अच्युतानंद की बात पर यकीन नहीं कर पा रही थी लेकिन उसके दिमाग में कश्मकश चल रही थी कि आशुतोष के बारे में इन्हें कैसे मालूम हुआ?


"तो आप कहना चाहते हैं कि मुझे और आशुतोष को मिलकर इस श्राप को तोड़ना होगा। है न!" अनिका ने सवाल दागा।


"हां, परन्तु ये सब इतना सरल नहीं होगा।" स्वामी अच्युतानंद चिंतित दिख रहे थे- "पिछले हजार वर्षों में अघोरा की शक्तियां कई गुना बढ़ चुकीं हैं और यही नहीं अपनी तंत्र- विद्या के प्रयोग से उसने कई आत्माओं को बंधक बना रखा है। इनमें से अधिकतर तुम्हारे और आशुतोष के पूर्वज हैं, जो उसके वशीभूत होकर उसके सेवक बनें हैं। उन सबकी मुक्ति हेतु अघोरा की मुक्ति भी आवश्यक है।"


"पर हम ये करेंगें कैसे?" अनिका ने असमंजस में पूछा।


"इसमें हम तुम्हारी सहायता नहीं कर सकते!" स्वामी अच्युतानंद ने कहा- "हमारा कार्य तो मात्र तुम्हें मात्र वास्तविकता का बोध कराना है। आगे का कार्य आपको स्वयं करना होगा।"


"लेकिन हम दोनों में से तो किसी को भी तंत्र- मंत्र नहीं आता और आप कह रहें हैं कि वो भूत है।" अनिका घबराकर बोली- "अब अगर आप मदद नहीं करेंगें तो हम उससे लडेंगें कैसे?"


"इसीलिये तो हमने तुम्हें बुलाया है।" स्वामी अच्युतानंद मुस्कुराकर बोले- "सूर्योदय तक प्रतीक्षा करो। सूर्योदय के साथ तुम्हें तुम्हारे प्रश्नों के उत्तर मिल जायेंगें। आज पूर्णिमा है और आज के दिन सत् शक्तियां अपने चरम पर रहतीं हैं। आज तुम्हें अपने कर्तव्य का ज्ञान भी हो जायेगा।"


उधर अस्पताल में स्वामी शिवदास भी आशुतोष से इसी बावत बात कर रहे थे।


"आपने कहा था कि अगर अघोरा को नहीं रोका गया तो पूरी धरती तबाह हो जायेगी। वो ऐसा क्या करना चाहता है?" आशुतोष ने पूछा।


"क्रोध और प्रतिशोध के कारण अघोरा का सम्पूर्ण पतन हो चुका है। इसी कारण उसे मुक्ति नहीं मिली और अब वो शीघ्र ही अनिका की बलि से दैत्य धूम्रपाद का शरीर प्राप्त करना चाहता है।" स्वामी जी चिंतित स्वर में बोले- "अनिका का जन्म मां जगदम्बा की कृपा से एक विशेष नक्षत्र में हुआ है, जिस कारण अघोरा अनिका की बलि देकर महाशक्तिशाली हो जायेगा और ब्रह्मांड की अनेकों शक्तियां उसका दासत्व स्वीकार करने पर बाध्य हो जायेगी।"


"और इस धूम्रपाद को पिछली बार रूद्र ने मारा था है न! यही सपना तो मुझे आया था लेकिन आप रूद्र की पहचान मुझसे छुपाना चाहतें हैं।" आशुतोष मुस्कुराकर बोला।


"कुछ प्रश्नों के उत्तर तो हमें भी ज्ञात नहीं है। तुम सूर्योदय तक प्रतीक्षा करो। तुम्हें अपने प्रत्येक प्रश्न का उत्तर मिल जायेगा।"


"वैसे तो मैं काफी कुछ समझ चुका हूं, लेकिन ये बताइये कि मैं उस अघोरा को रोकूंगा कैसे? मेरे पास कोई सुपरपावर तो है नहीं और न ही मैं कोई तंत्र- मंत्र जानता हूं। अब गोली का तो उस पर असर होने से रहा।"


"ये तो हम स्वयं भी नहीं जानते।" स्वामी जी ने कहा- "जब हम शिक्षा पूर्ण कर देशाटन पर निकले तो हमारे गुरू महाराज श्री सत्येंन्द्र नाथ ने हमें तुम्हें यह कथा सुनाकर तुम्हारी कुंडलिनी जागृत करने का आदेश देते हुये तुम्हारा संरक्षक नियुक्त किया था। अब तक हमारे ही कहने पर तुम्हारे माता- पिता तुम्हारे साथ ऐसा व्यवहार करते थे, ताकि तुम्हें जीवन में सच्चे प्रेम का महत्व ज्ञात हो सके।"


"लेकिन कुंडलिनी शक्ति जागृत होने में तो कई महीने लग जायेंगें।" आशुतोष बोला- "और अगर जाग भी गई तो उसके बाद करना क्या है?"


"कुंडलिनी शक्ति के जागृत होने पर तुम्हें किसी अन्य के विचारों पर निर्भर रहने की आवश्यकता नहीं रहेगी।" स्वामी जी मुस्कुराकर बोले- "हां, ये सही है कि कुंडलिनी शक्ति जागृत करने में साधक को कई वर्ष, कई बार तो पूरा जीवन लग जाता है, परंतु यदि योग्य गुरू का सानिध्य प्राप्त हो तो उनके सोद्देश्य स्पर्श मात्र से शरीर के सप्त- चक्र जागृत हो जाते हैं।"


"तो आप खुद को योग्यता का सर्टिफिकेट दे रहें हैं?" आशुतोष ने मुस्कुराकर पूछा तो स्वामी जी ठहाका लगाकर हंस पड़े। बोले- "नहीं, क्योंकि हमारी योग्यता तो हमारे गुरू महाराज ने हमें ये कार्य सौंपकर स्वयं ही प्रमाणित कर दी थी।"


"अब चलो, पहले तुम्हें आसन लगाने के योग्य बनाया जाये।" कहकर स्वामी शिवदास ने कुछ मंत्र बुदबुदाते हुये तीन बार आशुतोष के सिर से पांव की तरफ हाथ फेरा। आशुतोष को लगा मानो उसका सारा दर्द एक सेकेंड में गायब हो गया। उसने हाथ पर बंधे प्लास्टर से अपने सिर और पेट पर हल्की सी टक्कर मारी और दर्द न पाकर खुशी से खड़ा हुआ और स्वामी शिवदास के चरणों में सिर रखकर बोला- "अब कोई शक नहीं है। आप सचमुच बड़े चमत्कारी हैं स्वामी!"


"इस संसार में चमत्कार कुछ नहीं होता।" स्वामी जी मुस्कुराये और आशुतोष को बिस्तर पर बिठाकर बोले- "ये तो हमारे साधु- संतो का संग्रहित ज्ञान है, जो उन्हें स्वयं भगवान शिव और उनके सप्त- ऋषि शिष्यों से प्राप्त हुआ। हमने मात्र तुम्हारी पीड़ा हरी है परन्तु घाव भरने में अभी एकाध दिन लगेंगें।"


लेकिन आशुतोष ने जैसे कुछ सुना ही न हो। वो उत्साहपूर्वक अपने शरीर पर बंधे प्लास्टर और पट्टियों को काटने में उलझ गया।


* * *



सूर्योदय के साथ ही स्वामी अच्युतानंद अनिका की, जबकि स्वामी शिवदास आशुतोष की कुंडलिनी- शक्ति योग- विद्या के माध्यम से जागृत करने लगे।


"अब हम तुम्हारी कुंडलिनी शक्ति को जागृत करने की प्रक्रिया आरंभ करेंगें।" आशुतोष को अस्पताल के फर्श पर अपने सम्मुख पद्मासन लगवाते हुये स्वामी शिवदास बोले- "मानव शरीर में अनेकों नाड़ियां हैं, जिनमें इड़ा, पिंगला और सुषुम्ना तीन प्रमुख नाड़ियां हैं। इन नाडियों के संधि- स्थल पर सात चक्र होतें हैं जो अनंत- ऊर्जा के स्त्रोत हैं। कुंडलिनी शक्ति मनुष्य की चेतना का पर्याय है और साधारण मनुष्य की चेतना उसके सबसे निम्न चक्र मूलाधार चक्र में होती है, परन्तु योग और तंत्र के माध्यम से मनुष्य की चेतना उन्नत होकर मूलाधार चक्र से सहस्रार चक्र की ओर बढ़ती चली जाती है। सहस्रार चक्र को पार करते ही कुंडलिनी शक्ति पूर्णरूपेन जागृत हो जाती है। तुम तैयार हो?" 


"हां गुरूजी!" आशुतोष ने जवाब दिया।


"उचित है! अब ध्यान लगाओ।" कहकर स्वामी शिवदास ने अपना दायां हाथ आशुतोष के सिर पर रखते हुये 'लं' मंत्र का जाप करने को कहा और कुछ मंत्र बुदबुदाने लगे। आशुतोष भी 'लं' मंत्र का जाप करने लगा।


"तुम्हारी चेतना अब मूलाधार चक्र को पार कर चुकी है।" कुछ क्षण बाद स्वामी जी बोले- "ये चक्र आनंद और वीरता का भाव दिलाता है।"


"अब तुम 'वं' का जाप करो!" मंदिर के गर्भगृह में स्वामी अच्युतानंद ने अनिका से कहा और आंखे मूूंदकर मंत्र बुदबुदाने लगे। कुछ क्षण बाद स्वामी जी बोले- "अब तुम्हारा स्वाधिष्ठान चक्र जागृत हो चुका है। यह चक्र अहं, आलस्य और प्रमाद जैसे दुर्गुणों से तुम्हें मुक्त रखेगा।"


इस तरह एक- एक कर स्वामी अच्युतानंद ने अनिका और स्वामी शिवदास ने आशुतोष के सातों चक्रों को जागृत किया।


"अब तुम्हारे सहस्रार चक्र का जागरण सम्पूर्ण हुआ।" स्वामी शिवदास जी ने आशुतोष के सिर से हाथ हटाते हुये कहा- "ये चक्र शांति और मोक्ष का प्रतीक है, जो तुम्हारे शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक जीवन में सामंजस्य रखेगा। जैसे- जैसे तुम्हारी साधना बढ़ेगी, यह चक्र और भी दृढ़ होगा तथा तुम्हारी कुंडलिनी शक्ति में भी वृद्धि होगी। क्या अब भी कोई प्रश्न शेष है?"


"नहीं गुरूजी! अब कोई प्रश्न शेष नहीं है। यदि भगवती अम्बा की कृपा रही तो जल्दी ही मैं अघोरा को रोक लूंगा। बस आप मेरे परिवार की अघोरा से रक्षा का प्रबंध कर दीजिये।" आशुतोष के मुख पर अनन्य शांति थी।


"मैं प्रबंध करता हूं। अब हमारा कार्य सम्पूर्ण हुआ। ईश्वर तुम्हारी रक्षा करें!" स्वामी शिवदास ने मुस्कुराकर कहा और उठकर वार्ड से बाहर निकल गये।


* * *



वहां स्वामी अच्युतानंद अच्युतानंद ने भी अनिका की कुंडलिनी शक्ति जागृत कर दी थी, जिससे उसके मुख पर परमानंद का भाव तैरने लगा।


"आशा है कि अब आपको हमसे कुछ पूछने की आवश्यकता नहीं होगी।" स्वामी अच्युतानंद मुस्कुराकर बोले।


"नहीं गुरूजी! बल्कि मुझे तो अजीब सी फीलिंग आ रही है। जैसे मुझसे ज्यादा खुश इंसान इस दुनिया में है ही नहीं।" अनिका चहकते हुये बोली।


"अभी तुम्हारी कुंडलिनी मात्र जागृत हुई है। इसे और दृढ़ करने के लिये तुम्हें नियमित साधना की आवश्यकता पड़ेगी।" स्वामी अच्युतानंद अनिका की प्रसन्नता देख हंस पड़े।


"लेकिन मुझे तो इस ताकत का इस्तेमाल करना ही नहीं आता तो मैं अघोरा से कैसे लडूंगी?" अनिका ने सवाल किया।


"समय के साथ आप इसकी अभ्यस्त हो जाओगी।" स्वामी अच्युतानंद बोले- "परन्तु अब शीघ्र ही अघोरा को ज्ञात हो जायेगा कि आप इस श्राप को काटने का प्रयास कर रहीं हैं इसलिये अब उसके आघात प्रारंभ हो जायेंगें। अत: आप शीघ्र ही आशुतोष से मिलकर इस श्राप और अघोरा के विनाश का प्रबंध कीजिये।"


"लेकिन अगर अघोरा ने मां- पापा...."


"उनकी सुरक्षा का प्रबंध हम करेंगें।" स्वामी अच्युतानंद ने आश्वासन दिया।


"तो फिर ठीक है गुरूजी! बताइये कि अब हमें क्या करना है?" अनिका ने पूछा तो स्वामी जी के माथे पर चिंता की लकीरें उभर आई। बोले- "ये तो हमें भी ज्ञात नहीं परन्तु आप शीघ्रातिशीघ्र आशुतोष से मिल लीजिये। कदाचित उनसे मिलकर आपको कोई मार्ग मिल जाये?"


"ठीक है।" कहकर अनिका ने स्वामी जी को प्रणाम किया और मंदिर के गर्भगृह से बाहर निकल आई। स्वामी अच्युतानंद ने भी उनका अनुसरण किया। बाहर ठाकुर विशम्भरनाथ और अरूणिमा जी व्याकुलता से उनकी प्रतीक्षा कर रहे थे।


"गुरूजी! सब ठीक है न!" ठाकुर साहब ने हाथ जोड़कर पूछा।


"अब तक तो सब कुशल है ठाकुर साहब! आगे की ईश्वर जाने।" कहकर स्वामी अच्युतानंद महाराज ने मंदिर से प्रस्थान किया। उनके पीछे- पीछे ठाकुर साहब भी अनिका और अरुणिमा जी को साथ लिये मंदिर से निकले और गाड़ी में बैठकर हवेली की तरफ चल पड़े।


* * *



स्वामी शिवदास के जाते ही मिशा मि. श्यामसिंह और विमला देवी के साथ वार्ड में दाखिल हुई। आशुतोष पर नजर पड़ते ही तीनों हर्षमिश्रित आश्चर्य से उसे देखने लगे। आशुतोष ने हाथ पर लगा प्लास्टर काट फेंका था और सिर तथा पेट पर लगीं पट्टियां भी निकाल दी थी। उसके जख्म हालांकि भरे नहीं थे लेकिन काफी हद तक ठीक हो चुके थे।


"वाऊ.... इट्स मिरैकल...." मिशा को अपनी आंखों पर भरोसा नहीं हो रहा था। आशुतोष ने मुस्कुराकर स्वामी शिवदास की बात दोहरा दी- "दुनिया में कुछ भी मिरैकल नहीं है मिशा.... बस उन्नत ज्ञान है।"


"फिर भी.... आई कांट बिलीव इट। पांच घंटे पहले तुम ओ.टी. में थे। डॉक्टर क्रिटिकल केस बता रहे थे और अब अचानक...."


"यू वाना फाइट विद मी!" आशुतोष ने बॉक्सिंग की पोजीशन बनाकर हंसकर कहा।


"पापा.... मुझे जल्दी ही भवानीपुर जाना होगा।" आशुतोष ने श्यामसिंह से कहा तो उन्होनें उसे गले से लगा लिया।


"मुझे माफ कर देना मेरे बच्चे...." श्यामसिंह रूंधे गले से बोले।


"आप मुझसे माफी मांग रहे हो पापा? आपने तो सब मेरी भलाई के लिये ही किया था न!" आशुतोष मुस्कुराते हुये उनकी छाती से अलग होकर बोला।


"लेकिन हमारी वजह से तुम्हें बहुत दु:ख उठाना पड़ा।" विमला देवी सुबकते हुये बोलीं- "हमने तुम्हारे साथ कितनी ज्यादतियां की और हमारी ही वजह से तुम...."


"मां, अगर आप वो सब नहीं करते तो मैं कभी इतना मजबूत नहीं बन पाता। आपका तो एहसान है मुझपर!" आशुतोष ने विमला देवी की बात काटकर मुस्कुराते हुये कहा और उनके पांव छू लिये।


"मां- बाप बच्चों पर कोई एहसान नहीं करते, बस अपना फर्ज निभाते हैं।" श्यामसिंह ने आशुतोष का कंधा थपथपाया और विमला देवी और आशुतोष को गले से लगा लिया।


"और आप तीनों के झगड़े में मैं विलेन बन गई।" मिशा के कहने पर तीनों का ध्यान उसपर गया और सब ठहाका लगाकर हंस पड़े। आशुतोष ने मिशा को भी छाती से लगा लिया।


"अब चलता हूं पापा!" आशुतोष ने गहरी सांस छोड़ी- "अगर जिंदा रहा तो फिर मिलेंगें।"


"जल्दी आना और जीतकर आना।" श्यामसिंह ने रूंधे गले से विदा दी और आशुतोष हॉस्पिटल से निकल पड़ा।



* * *



क्रमशः


    ----अव्यक्त



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2 Comments

Pamela

02-Feb-2022 01:55 AM

Bahut badhiya

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BhaRti YaDav ✍️

29-Jul-2021 04:38 PM

Nice

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